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										पं० श्रीराम शर्मा आचार्य जी द्वारा रचित साहित्य को जन-जन तक पहुँचाने, लोगों को पढ़ाने एवं घर-घर पहुँचाने के लिए कई योजनाएँ चलाई जा रही हैं, जो निम्न हैं—
1. विद्या विस्तार केंद्र स्थापना— जो सद्विचारों को साहित्य के माध्यम से जन-जन तक पहुँचाने में रुचि रखते हैं, उनको युग निर्माण योजना विस्तार ट्रस्ट, मथुरा के नाम अपना पूरा नाम, पूरा पता,फोन नंबर सहित भेजकर विद्या विस्तार केंद्र का पंजीयन करा लेना चाहिए। जिसके लिए 100/- रु० जमा करने पड़ते हैं। रजि० केंद्र के लिए साहित्य मँगाने पर 25% छूट मिलती है ।
2. स्वाध्याय मंडल— पाँच सदस्यों की संचालक मंडली गठित करनी चाहिए। इन पाँच में से प्रत्येक को एक-एक रुपया नित्य अंशदान और न्यूनतम एक घंटा प्रतिदिन समयदान करते रहने के लिए सहमत करना चाहिए। पाँच सदस्यों में से प्रत्येक को अपने संपर्क के पाँच-पाँच ऐसे व्यक्ति ढूँढ़ने चाहिए, जिनकी स्वाध्याय में, विचारशीलता में रुचि है अथवा पैदा की जा सके। इस प्रकार कुल तीस सदस्य हो जाते हैं ।
3. पत्रिका विस्तार— इन दिनों मिशन की चार मुख्य पत्रिकाएँ—(१) अखण्ड ज्योति (हिंदी व अँगरेजी), (२) युग निर्माण योजना (हिंदी), (३) युग शक्ति गायत्री (गुजराती) तथा (४) प्रज्ञा अभियान पाक्षिक (हिंदी, गुजराती व बंगला) में प्रकाशित हो रही हैं। मिशन की अन्य पत्रिकाएँ अन्य भाषाओं में जैसे असमिया, तमिल, तेलुगु, कन्नड़, मराठी, बंगला व उड़िया भाषाओं में भी प्रकाशित हो रही हैं ।
4. झोला पुस्तकालय— अपने अंशदान का साहित्य झोले में रखें। अपने परिचित-अपरिचित भाई-बहनों के घर-घर जाकर स्वाध्याय का महत्त्व समझाकर उन्हें एक पुस्तक दे दें । एक सप्ताह बाद पुन: नई पुस्तक देकर पुरानी वापस ले लें ।
5. ज्ञानरथ— हलके रबड़ के पहिये वाली गाड़ी, ऊपर धूप, हवा, वर्षा से पुस्तकों के बचाव की व्यवस्था, पहियों को तीन तरफ से घेरे हुए कपड़े, रेग्जीन, टीन के साइन बोर्ड, भीतर युग निर्माण साहित्य, बस हो गया तैयार चल पुस्तकालय— ज्ञानरथ। उसे लेकर एकाकी व्यक्ति नित्य साहित्य बिक्री के लिए निकलता रह सकता है। बहुत-सी शाखाओं / परिजनों ने ज्ञानरथ के बड़े वाहन भी तैयार किए हैं ।
6. ज्ञानमंदिर— एक ही विषय की चुनी हुई पुस्तकों के सैट तैयार कर लेने चाहिए। रुचि के अनुसार ये सैट घर-घर में देवमंदिर के साथ ज्ञानमंदिर के रूप में स्थापित कराने चाहिए । धार्मिक संस्थाओं, विद्यालयों, कॉलोनियों, मुहल्लों, गाँवों, कसबों में सामूहिक ज्ञानमंदिरों की स्थापना का क्रम चलना चाहिए। जिसमें संपूर्ण खंड वाङ्मय के तथा युगसाहित्य की सभी पुस्तकें रखी जाएँ। सदस्य बनाकर घर पर पढ़ने एवं वापस लेने तथा साहित्य खरीदने की भी सुविधा यहाँ रहनी चाहिए ।
7. दीवार लेखन— सभी शक्तिपीठ, प्रज्ञापीठ, शाखाएँ एवं प्रज्ञामंडल इसी प्रकार अपने सभी सदस्यों, परिचितों और संबंधियों से अपने घरों एवं आस-पास के क्षेत्रों में सद्वाक्य लेखन का कार्य सुनिश्चित कराएँ ।
8. सद्वाक्य, पोस्टर, स्टिकर योजना— तीस प्रकार के सद्वाक्यों के स्टिकर तैयार हैं । अधिक-से-अधिक स्टिकर्स मँगाकर अपने घर के हर कमरे, बरामदे, भोजनालय तथा सार्वजनिक स्थानों, बसों, रेलगाड़ियों, स्कूल, कॉलेजों आदि में चिपकाएँ ।
9. बुक हेंगर योजना— पॉकेट बुक और बड़ी पुस्तकों के लिए दो प्रकार के बुक हेंगर तैयार कराए गए हैं । बुक हेंगर पारदर्शी मजबूत पोलीथिन से बना लटकने वाला हेंगर है, जिसमें ऊपर की ओर प्लाई एवं लटकने वाली मजबूत रस्सी बँधी रहती है । इसमें पॉकेट बुक्स के २८ एवं बड़ी पुस्तकों के १५ पॉकेट बने होते हैं, बुक हेंगरों को कहीं भी लाना-ले जाना आसान होता है । कहीं भी लटकाकर थोड़ी देर में ही एक प्रदर्शनी लगाई जा सकती है।
10. पुस्तक मेला— पूज्यवर के चिंतन से प्रभावित प्रबुद्ध समाज और युवा वर्ग पूज्यवर के सतयुगी संकल्पों को साकार करने में अपने क्षेत्र में पुस्तक मेला लगाकर महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं । मेलों द्वारा ही पूज्यवर के विचारों को प्रत्येक के पास तक पहुँचाया जा सकता है । पुस्तक मेला से संबंधित जानकारी युग निर्माण योजना गायत्री तपोभूमि, मथुरा के पुस्तक मेला विभाग से की जा सकती है ।
पूज्यवर का एकसूत्रीय कार्यक्रम रहा है, जनमानस का परिष्कार । इसे ही सामाजिक भाषा में विचारक्रांति-अभियान एवं आध्यात्मिक भाषा में ज्ञानयज्ञ कहा जाता है । पूज्यवर ने सूक्ष्मदृष्टि से यह भली भाँति समझ लिया था कि युग-परिवर्तन का मुख्य आधार विचार-परिवर्तन ही है । व्यक्ति-निर्माण से समाज-निर्माण और फिर इससे युग निर्माण होगा ।
स्थायी परिवर्तन हेतु विश्वव्यापी विचार-परिवर्तन अनिवार्य है । आगामी युद्ध शस्त्रों से नहीं, कुविचारों को सद्विचारों की तलवार से काटकर ही जीते जाएँगे ।
इसके लिए पूज्यवर रचित युगसाहित्य को जन-जन तक पहुँचाना वर्तमान समय का सबसे बड़ा धार्मिक अनुष्ठान एवं युगधर्म है । युग-परिवर्तन की समग्र क्रांति पूज्य गुरुदेव के विचारों को अपनाने से ही संभव हो सकेगी ।
पुस्तक मेलों में इन आयोजनों से कोई क्षेत्र अछूता न रहे । जहाँ पहले पुस्तक मेले लग गए हैं, उन्हें अपने निकटवर्ती जिलों, तहसीलों, कस्बों व विद्यालयों में पुस्तक मेले आयोजित करने चाहिए । मेलों के समय उत्पन्न क्षेत्रीय जन भावना को पोषित करते हुए इन मेलों को वार्षिक आयोजन के रूप में प्रतिवर्ष आयोजित करते रहना चाहिए ।