आचार्य जी सादगी की प्रतिमूर्ति, राष्ट्रसंत एवं स्वतंत्रता संग्राम सेनानी के रूप में जाने जाते हैं। माताजी सादा, सरल एवं ममत्व, स्नेह से लबालब शक्तिस्वरूपा थीं। दोनों ही आज सशरीर हमारे बीच नहीं हैं। आदर्शवादी गायत्री परिवार का इतना बड़ा संगठन दोनों ने ममत्व से सींचकर अपने अथक प्रयत्न से खड़ा किया। इतने बड़े गायत्री परिवार का संगठन तथा मानव गढ़ने का साँचा उनके द्वारा कठिन प्रयत्नों से बनाया गया ।
माताजी का जन्म सन् 1926 में 20 सितंबर को हुआ । वे मिशन के समस्त कार्यों में बराबर की सहयोगिनी रहीं । नारी जागरण अभियान का शुभारंभ माताजी के द्वारा प्रारंभ किया गया । सघन आत्मीयता-सहृदयता की प्रतिमूर्ति, आतिथ्य और दुलार को लुटाने वाली माता भगवती देवी शर्मा सबकी माता बन गईं।
सन् 1971 तक मथुरा में बड़े-बड़े यज्ञायोजनों की व्यवस्था उन्हीं के कुशल नेतृत्व के कारण सफल होती रही । घर की व्यवस्था, भोजन-व्यवस्था के साथ-साथ कार्यालय, अखण्ड ज्योति पत्रिका का संपादन तथा पत्राचार आदि बड़ी कुशलता से सँभालती रहीं । कोई भी व्यक्ति आता माताजी के हाथ का भोजन-प्रसाद पाकर इतना तृप्त होता कि उनका ही होकर रह जाता ।
पूज्य गुरुदेव का कठोर अनुशासन और वंदनीया माताजी का वात्सल्य भरा दुलार, दोनों ने मिलकर वसिष्ठ-अरुंधती युग्म की भाँति युगनिर्माणियों का सृजन किया। स्नेह भरा आतिथ्य, पीड़ितों-दु:खियों को ममत्व भरा परामर्श देकर विशाल गायत्री परिवार खड़ा कर दिया। ॠषियुग्म ने ब्राह्मणत्व का जीवन, ओढ़ी हुई गरीबी से युक्त त्याग-तपस्या का आदर्श जीवन जीकर दिखाया, जिसने हर अतिथि को प्रभावित किया।
युग निर्माण योजना’ नवनिर्माण की अभिनव महत्त्वपूर्ण योजना है, जिसकी संकल्पना परमपूज्य पं० श्रीराम शर्मा आचार्य जी के द्वारा मथुरा में आयोजित सन् 1958 के सहस्रकुंडीय गायत्री महायज्ञ के समय की गई थी ।
व्यक्ति-निर्माण, परिवार-निर्माण, समाज-निर्माण का लक्ष्य लेकर यह अभियान वेदमूर्ति तपोनिष्ठ पं० श्रीराम शर्मा आचार्य जी ने सन् 1962 में गायत्री तपोभूमि, मथुरा से आरंभ किया । स्वस्थ शरीर, स्वच्छ मन एवं सभ्य समाज की अभिनव रचना का लक्ष्य पूरा करने के लिए विगत कई दशकों से संचालित यह आंदोलन पूरे संसार में चलाया जा रहा है ।
नवनिर्माण का यह अभियान समय की एक अत्यंत आवश्यक एवं महत्त्वपूर्ण पुकार है । प्रत्येक विचारशील व्यक्ति के लिए यह योजना अपनाए जाने योग्य है । व्यक्ति के परिवर्तन से ही समाज, विश्व एवं युग का परिवर्तन संभव है ।
युग निर्माण का उद्देश्य व्यक्ति, परिवार एवं समाज की ऐसी अभिनव रचना करना है, जिसमें मानवीय आदर्शों का अनुकरण करते हुए सब लोग प्रगति, समृद्धि और शांति की ओर अग्रसर हों। इसी को दूसरे शब्दों में ‘मनुष्य में देवत्व का उदय’ एवं ‘धरती पर स्वर्ग का अवतरण’ कह सकते हैं। इसे क्रियान्वित करने हेतु विशिष्ट वैचारिक, आध्यात्मिक सूत्रों की रचना की गई है, जिसे युग निर्माण सत्संकल्प के रूप में सन् 1963 में अभिव्यक्त किया गया..........
क्रमशःजो सद्विचारों को साहित्य के माध्यम से जन-जन तक पहुँचाने में रुचि रखते हैं, उनको युग निर्माण योजना विस्तार ट्रस्ट, मथुरा के नाम अपना पूरा नाम, पूरा पता, फोन नंबर सहित भेजकर विद्या विस्तार केंद्र का पंजीयन करा लेना चाहिए। पं० श्रीराम शर्मा आचार्य जी द्वारा रचित साहित्य को जन-जन तक पहुँचाने, लोगों को पढ़ाने एवं घर घर पहुँचाने के लिए कई योजनाएँ चलाई जा रही हैं। अपने अंशदान का साहित्य झोले में रखें...
क्रमशःभावन्त:वा इमां पृथिवी वित्तेन पूर्णमद तल्लोकं जयति त्रिस्तावन्तं जयति भूयां सेवाक्षम्यय एवं विद्वान अहरह स्वाध्यायमधीते ।—शतपथ ब्राह्मण
तात्पर्य यह है कि धन-धान्य से संपन्न धरती दान करने से, जितना पुण्य दाता को मिलता है, उसके तीन गुने से भी अधिक लाभ नियमित रूप से स्वाध्यायशील को मिलता है ।
स्वाध्याय योग युक्तात्मा परमात्मा प्रकाशते । —महर्षि व्यास
क्रमशः(1) साधना— साधना ही युग निर्माण मिशन का मूल प्राण है । इसी आधार पर गायत्री परिवार खड़ा है । • जीवन साधना से जोड़कर स्वाध्याय, संयम, सेवा में लगाना । • मंत्र जप, मंत्र लेखन, संस्कार, देवस्थापना, बलिवैश्व, यज्ञ, धार्मिक आयोजन, तुलसी आरोपण आदि प्रत्येक व्यक्ति करे । • परमपूज्य गुरुदेव द्वारा कराई गई विभिन्न ध्यान साधनाओं में से किसी एक को गहराई में उतारें।
(2) शिक्षा— ऐसे आंदोलन के रूप में गति दिया जाना है,
क्रमशः